ढूंढ रहा हूँ
6:56 AM | Author: rohit
वो भाव कहाँ से लाऊं जो झलक पड़ें आँखों में
वो नयन कहाँ से लाऊं जो न खोएं ख़्वाबों में
ढूंढ रहा हूँ वो लम्हे जो आशाएं चुनती हैं
वो कड़ियाँ ढूंढ रहा हूँ जो रिश्तों को बुनती हैं .

कहाँ खो गए शब्द सभी जो ज़बान पे न आते थे
कहाँ छुप गए हृदय सभी जो उन्हें समझ जाते थे
ढूंढ रहा हूँ वो आँखें जो दिल की बातें सुनती हैं
वो कड़ियाँ ढूंढ रहा हूँ जो रिश्तों को बुनती हैं .

वो यादें जिन में छुप कर मन चिर निद्रा सोता है
वो बातें जिन की गहराई में दिल हर पल खोता है
ढूंढ रहा हूँ वो सच्चाई जो अपनों को दिखती है
वो कड़ियाँ ढूंढ रहा हूँ जो रिश्तों को बुनती हैं .

इंसान कहाँ हैं वो अब जिनको अश्रु मोती लगते हैं
हैं कहाँ पर रस्ते वो जिन पर साथी चलते हैं
ढूंढ रहा हूँ वो खुशियाँ जो कहीं नहीं बिकती हैं
वो कड़ियाँ ढूंढ रहा हूँ जो रिश्तों को बुनती हैं .
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1 comments:

On April 4, 2010 at 12:41 AM , semi said...

Its really fantastic....