कभी सोच के देखा है तुमने ?

क्यों डांट डपट के भैय्या तुमको
बच्चे सा कुछ सिखलाते हैं
और वक़्त पड़े तो फ़ोन मिला कर
छोटे से राय मिलाते हैं

क्यों बरस पड़ती हैं अम्मा अचानक
देख तुम्हे थका हारा
और फिर खुद ही पानी लाने को
भूल जाती हैं जग सारा

क्यों लड़ती है टेलीफोन पे वो
जब किसी पे तुम गुस्साते हो
फिर हाथ पकड़ के समझाती है
जब घर तुम वापस आते हो

कभी सोच के देखा है तुमने
उन अनकहे लव्जों के बारे में
जो पहुँच गए थे कानो तक
पर पड़े रहे किनारे में

कभी सोच के देखा है तुमने?

क्यों अँधेरे में बैठी छुटकी
अचानक देख घर तुम्हे सकपका जाती है
गिरती बूंदें आंसुओं की कहीं
मुस्कान में कैसे बदल जाती हैं

हँसता चेहरा दोस्त का कैसे
कभी कभी मुरझा जाता है
सवाल होता है मन में तो उसके
पर कभी ज़बान पे नहीं आता है

देख रही होती हैं आँखें
उनकी लगातार चुप चाप तुम्हे
मुस्कराहट तो है चेहरे पर
पर है इंतजार किसी बात का उन्हें

कभी सोच के देखा है तुमने
के ये इंतज़ार किसका होता है
वो हर चेहरा खोया सहमा सा
कुछ कहने को बेकरार होता है

कभी सोच के देखा है तुमने?

कभी कभी मंजिल सामने हो
तब भी नज़र झुक सी जाती है
पहुँच चुके हों साहिल तक
तब भी कश्ती बिखर जाती है

कोई सवाल कोई जवाब
इस दिल में होता है
तब भी ये मन अकेला सा
जाने किस ख़याल में खोता है

साथ होता है हाथों का
लेकिन वो हाथ साथ नहीं होता
और कभी कभी हंसी के झोकों में
मिल जाता है ये दिल रोता

कभी सोच के देखा है तुमने
क्या कमी है वो जो हर पल खलती है
ढूँढना कभी रौशनी में तारों की
सोचना एक बार , सांझ जब भी ढलती है
ढूंढ रहा हूँ
6:56 AM | Author: rohit
वो भाव कहाँ से लाऊं जो झलक पड़ें आँखों में
वो नयन कहाँ से लाऊं जो न खोएं ख़्वाबों में
ढूंढ रहा हूँ वो लम्हे जो आशाएं चुनती हैं
वो कड़ियाँ ढूंढ रहा हूँ जो रिश्तों को बुनती हैं .

कहाँ खो गए शब्द सभी जो ज़बान पे न आते थे
कहाँ छुप गए हृदय सभी जो उन्हें समझ जाते थे
ढूंढ रहा हूँ वो आँखें जो दिल की बातें सुनती हैं
वो कड़ियाँ ढूंढ रहा हूँ जो रिश्तों को बुनती हैं .

वो यादें जिन में छुप कर मन चिर निद्रा सोता है
वो बातें जिन की गहराई में दिल हर पल खोता है
ढूंढ रहा हूँ वो सच्चाई जो अपनों को दिखती है
वो कड़ियाँ ढूंढ रहा हूँ जो रिश्तों को बुनती हैं .

इंसान कहाँ हैं वो अब जिनको अश्रु मोती लगते हैं
हैं कहाँ पर रस्ते वो जिन पर साथी चलते हैं
ढूंढ रहा हूँ वो खुशियाँ जो कहीं नहीं बिकती हैं
वो कड़ियाँ ढूंढ रहा हूँ जो रिश्तों को बुनती हैं .
अंतरात्मा
7:07 AM | Author: rohit

मै प्रेम नही , अधिकार नही , भावुक अस्थिर विचार हूँ

उज्जवल किरण प्रकाश की , जटिल अन्धकार हूँ

भ्रम हूँ , हूँ वास्तविकता , रूप आकार हूँ

सदभाव नही , मैत्री हूँ , क्लेश विकार हूँ


मै अंत-विहीन, मै विष-विहीन, मै द्वार हूँ आत्म निरिक्षण का

मै गुण-विहीन, अश्रु-विहीन, मै साक्ष्य हूँ हर एक क्षण का

मै बल हूँ, गति हूँ, साहस हूँ, मै आत्म-मंथन, मै आत्म-चिंतन

मै पथ विहीन हूँ हर पग पर, पर हर पथ का मै द्वार हूँ


मै प्रेम नही , अधिकार नही , भावुक अस्थिर विचार हूँ

उज्जवल किरण प्रकाश की , जटिल अन्धकार हूँ


मै हृदय रहित, मै द्वेष रहित, मै अज्ञानी विद्वान् हूँ

मिथ्या हूँ, सत्य हूँ, रचना कोई महान हूँ

वेदों का गुणगान हूँ मै, बाइबिल, कुरान हूँ

मै दर्शक हूँ बस मार्ग का एक, नही मार्गदर्शक समान हूँ


मै मुख-विहीन, अस्तित्वहीन, मै स्थिरता का हूँ एक प्रतीक

मै भेष नही संस्कार हूँ बस, मै हर प्रश्न का उत्तर सटीक

विशवास हूँ मै विचारों का, मै पराकाष्ठा हूँ प्रश्नों की

मै आत्मा की भाषा हूँ, भावनाओं का सम्मान हूँ


वेदों का गुणगान हूँ मै, बाइबिल, कुरान हूँ

मै दर्शक हूँ बस मार्ग का एक, नही मार्गदर्शक समान हूँ

song of black
2:40 PM | Author: rohit
ढूंढ़ते हैं सब रौशनी को क्यो?
देखते हैं क्यो बंद आँखों से यूँ?
रात है, बिजलियाँ है.
देखो कैसा ये समा है.
जी रहे हैं सोच के.
अपनी साँसे रोक के,
इतना सवेरा है क्यो...
when future is black.....


रहते क्यो हो इस सन्नाटे में.
जिसमे चीखे हैं हर एक राह में.
खुल के देखो इस दुनिया को.
बदल दो वो रोके जो.
हर घड़ी एक आह है.
पर सब के मन में ये चाह है,
इतना सवेरा है क्यो...
when future is black....


जिस समय में हैं हम सभी.
उसमे है कितनी कमी.
आसमान क्यो झुका सा है?
जीना बिल्कुल रुका सा है.
फ़िर भी क्यो बैठे हैं हम सोच के?
भुला दो ये पंगे सभी रोज के.
दिखा दो के जीना है क्या....
future is black.
my world
10:14 AM | Author: rohit
I live in my own world,
which is small and simple.
Far away from the reality,
here I am the only symbol.

I follow my own steps,
and look for those which are gone.
I cry when I die,
and laugh when I am born.

No one is here to hurt me,
except myself sometimes.
I run towards the end,
whenever my heart/soul cries.

When lost in dark deep somewhere,
I show myself the tiny ray.
To beat the better, to achieve the best,
I kill myself everyday.

Think that I run,
those outside.
But I know it's a battlefield,
not a place to hide.

I live in my own world,
which gives back the life to me.
but it's just like the real one.
here I am my own friend and I am my enemy.
Enlightened
5:32 AM | Author: rohit

I looked back in the shadows of past,
dreams scattered, shattered in the dust, some failed attempts and some hopes last.
Screams of the lost might,
and the fights between the wrong and the right.
I am still confused, running to escape,
but where will I run from this world so fake?
Eyes searching for the light they deserve,
dying without hope but still ready to serve.
Struggle inside the unconscious mind,
no questions to ask but many answers to find.
Hope slipping away from the hands,
and faith faded like the barren lands.

Just one question I asked to my heart,
why is life hitting me so hard?
I did my best, just like a soldier,
then why is this life not giving me a shoulder?
I lived my life for everyone’s sake,
there are no efforts which I didn’t make.
Then why are the dreams still unreached?
Why do I feel always besieged?
It’s not the road which is long,
neither am I doing something wrong.
Then why should I toil anymore?
When I have the key but can’t open the door.


The answer had always been there,
I just never knew to start from where.
But today I found it inside,
awaiting for me open in the wide.
Success doesn’t come by wish or dream,
engine requires ‘the power of steam’.
It’s easy to say ‘he got it by chance’,
but every viewer has a different stance.
Opportunities come seldom at door,
be ready to cash it instead of craving for more.
Never lose hope because failure is frequent,
success comes to those whose confidence is not consequent.


कुछ लव्ज़ अगर मिल जाएँ, एक लम्हा फिर से जी लूँ मै.

हर वृक्ष को जीवित कर दूँ, हर पत्ते को साँसे दे दूँ,
हर रिश्ते को दिल से छू लूँ, हर अपने को बाहें दे दूँ,
कुछ हाथ अगर मिल जाएँ, फिर पग पे अपने डग भर लूँ मै,
कागज़ के कोरे पन्नो पर, फिर जीवन को रस से भर लूँ मै.
कुछ लव्ज़ अगर मिल जाएँ, एक लम्हा फिर से जी लूँ मै.

हर नाम को एक मुख मै दे दूँ, हर मन को एक भाषा दे दूँ,
फिर लिख दूँ लक्ष्य कुछ ऊँचे से, जीवन को अभिलाषा दे दूँ,
कुछ हृदय अगर मिल जाएँ, फिर खुद में साँसे भर लूँ मै.
केवल कुछ शब्दों के जरिये, जीवन को अमर कर लूँ मै.
कुछ लव्ज़ अगर मिल जाएँ, एक लम्हा फिर से जी लूँ मै.